यूक्रेन संकट: भारत ने बताई UNSC में रूस के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पर वोट न करने की वजह

.
0

यूक्रेन संकट: भारत ने बताई UNSC में रूस के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पर वोट न करने की वजह

Ukrain Crisis

इमेज स्रोत,GETTY IMAGES

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के यूक्रेन के ख़िलाफ़ हमले के प्रस्ताव पर भारत के रुख़ पर सबकी नज़र थी लेकिन चीन और यूएई समेत भारत ने न तो इसके पक्ष में वोट किया न ही इसका विरोध किया. इन देशों ने वोट ही नहीं दिया.

भारत ने एक बयान जारी कर बताया कि रूस के यूक्रेन पर हमले के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पर उसने वोट क्यों नहीं किया.

बयान में सुरक्षा परिषद में भारत के प्रतिनिधि टी.एस. तिरुमूर्ति ने कहा कि यूक्रेन के हालिया घटनाक्रम से भारत बेहद परेशान है. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि कूटनीतिक बातचीत के ज़रिए मामला सुलझाने का रास्ता छोड़ दिया गया है. भारत आग्रह करता है कि हिंसा को जल्द से जल्द समाप्त किया जाए.

शुक्रवार देर रात (भारतीय समयानुसार) यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के विशेष सैन्य अभियान को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक अहम बैठक हुई थी. बैठक में रूस के हमले के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पेश किया गया जिसमें 15 सदस्य देशों को वोटिंग करनी थी.

प्रस्ताव के पक्ष में 11 सदस्यों ने वोट किया. लेकिन भारत, चीन और यूएई ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया.

हालांकि, प्रस्ताव को रूस ने वीटो पावर का इस्तेमाल कर रोक दिया है. इसके लिए रूस ने बतौर स्थायी सदस्य अपने वीटो का इस्तेमाल किया.

यूएन में रूस के राजदूत ने कहा कि रूस, यूक्रेन या फिर यूक्रेन के नागरिकों के ख़िलाफ़ युद्ध नहीं छेड़ रहा बल्कि वो डोनबास के लोगों को बचाने के लिए ये कदम उठा रहा है.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन पर रूस के हमले को रोकने और सेना को बुलाने के लिए वोटिंग कराई गयी. रूस सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से एक है जिसके पास वीटो पावर है. रूस के अलावा अमेरिका, चीन, फ़्रांस और ब्रिटेन के पास भी वीटो पावर है.

वीडियो कैप्शन,

रूसी सैनिक यूक्रेन की राजधानी कीएव तक जा पहुंचे

प्रस्ताव पर भारत ने वोट क्यों नहीं किया?

भारत ने एक बयान जारी कर यूक्रेन मुद्दे पर अपनी राय रखी साथ ही ये भी बताया कि मतदान नहीं करने का विकल्प क्यों चुना गया.

जो इस प्रकार है-

  • यूक्रेन में हाल के दिनों में हुए घटनाक्रम से भारत बेहद विचलित है.
  • हम अपील करते हैं कि हिंसा और दुश्मनी को तुरंत ख़त्म करने के लिए सभी तरह की कोशिशें की जाएं.
  • इंसानी ज़िंदगी की कीमत पर कभी कोई हल नहीं निकाला जा सकता है.
  • हम यूक्रेन में बड़ी संख्या में भारतीय छात्रों समेत भारतीय समुदाय के लोगों की सुरक्षा को लेकर भी चिंतित हैं.
  • समसामयिक वैश्विक व्यवस्था संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतरराष्ट्रीय क़ानून और अलग-अलग देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान पर आधारित है.
  • सभी सदस्य देशों को रचनात्मक तरीक़े से आगे बढ़ने के लिए इन सिद्धांतों का सम्मान करने की आवश्यकता है.
  • मतभेद और विवादों को निपटाने के लिए बातचीत एकमात्र ज़रिया है, चाहें ये रास्ता कितना भी मुश्किल क्यों न हो.
  • ये खेद की बात है कि कूटनीति का रास्ता छोड़ दिया गया है. हमें इस पर लौटना ही होगा.
  • इन सभी वजहों से भारत ने इस प्रस्ताव पर मतदान नहीं करने का विकल्प चुना है.

अमेरिका ने की रूस की आलोचना

संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस ग्रीनफ़ील्ड ने रूस की हरकत को बुनियादी सिद्धांतों पर हमला बताया है. उन्होंने कहा कि रूस वीटो करने की अपनी ताक़त का ग़लत इस्तेमाल कर रहा है.

वहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन पर हमले का मुद्दा उठाने के लिए सदस्य देशों का शुक्रिया किया है. रूस के वीटो पावर के इस्तेमाल पर उन्होंने लिखा कि ये सुरक्षा परिषद में रूस के नाम पर ख़ून के दाग़ जैसा है.

भारत के लिए क्यों है कश्मकश की स्थिति?

भारत लंबे वक़्त से रूस का मित्र देश रहा है. रूस भारत को हथियार और रक्षा उपकरण देता है.

हालांकि, दोनों के रिश्ते केवल रक्षा सौदों तक सीमित नहीं है. बॉलीवुड की फ़िल्में रूस में रिलीज़ होती हैं. बड़ी संख्या में भारतीय छात्र रूस में पढ़ते हैं. यहां तक कि केंद्रीय विद्यालय की एक ब्रांच भी रूस में है.

भारत का यूक्रेन के साथ भी व्यापारिक रिश्ता है और इन दोनों देशों में भारत के काफ़ी नागरिक रहते हैं. यूक्रेन में ज़्यादातर लोग पढ़ने जाते हैं. वहीं रूस में पढ़ाई के साथ-साथ कई भारतीय नौकरी के लिए भी जाते हैं.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक से पहले भी भारत ने रूस यूक्रेन संकट को लेकर किसी पक्ष की निंदा नहीं की थी.

इसी सप्ताह यूक्रेन के दो इलाक़े दोनेत्स्क और लुहांस्क को रूस ने स्वतंत्र क्षेत्र के रूप में मान्यता दे दी थी, जिसके बाद पश्चिमी मुल्कों की नाराज़गी बढ़ी. अमेरिका, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने रूस की कड़ी निंदा भी की.

लेकिन भारत इस मामले में तटस्थ रहा. उसने अपने आधिकारिक बयानों में न तो रूस की निंदा की है और न ही यूक्रेन की संप्रभुता को रेखांकित किया है

क्यों भारत किसी एक देश का समर्थन नहीं कर रहा

इसके बाद भारत में रूस के कार्यकारी राजदूत रोमान बाबुश्किन ने कहा कि रूस पर नए प्रतिबंधों के कारण भारत में एस-400 मिसाइल सिस्टम की डिलिवरी प्रभावित नहीं होगी. उन्होंने कहा कि भारत रूस से जो भी सैन्य उपकरण ख़रीदता है, उसकी आपूर्ति पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

यूरोपियन काउंसिल के साथ अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर काम करने वाले रिचर्ड गोवान ने ट्वीट कर कहा है, "ग़ैर-नेटो देशों में भारत सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन संकट पर बोला. भारत ने कूटनीति के ज़रिए तनाव कम करने की तमाम बातें कीं, लेकिन रूस की न तो निंदा की और न ही यूक्रेन की संप्रभुता का ज़िक्र किया."

रिचर्ड ने लिखा है, "31 जनवरी को यूक्रेन पर चर्चा के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वोटिंग हुई थी तब भारत के साथ कीनिया भी वोटिंग से बाहर था. लेकिन मंगलवार को कीनिया ने अचानक अपनी लाइन बदल ली. कीनिया ने कड़े शब्दों में पुतिन की निंदा की है. कीनिया ने कहा है कि पूर्वी यूक्रेन के हालात अफ़्रीका में उपनिवेशवाद के बाद के सरहद पर तनाव की तरह है. कीनिया ने कहा कि अफ़्रीकी देशों को औपनिवेशिक सीमा क्यों मानना चाहिए जब रूस नहीं मान रहा है."

यूक्रेन संकट पर भारत के रुख़ को लेकर लोगों की राय बँटी हुई है. भारत के अहम अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू के अंतरराष्ट्रीय मामलों के संपादक स्टैनली जॉनी ने लिखा है, "यूक्रेन मामले में रूस को लेकर भारत के रुख़ की जो आलोचना कर रहे हैं, वे बुनियादी तथ्यों की उपेक्षा कर रहे हैं. रूस और भारत के गहरे रिश्ते हैं और भारत अपने हितों के ख़िलाफ़ फ़ैसला नहीं ले सकता."

स्टैनली कहते हैं, "जहाँ तक नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की बात है तो रूस ने क्राइमिया को अपने में मिलाया और डोनबास को मान्यता दी तो बहुत ही तीखी अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया आई, लेकिन इसराइल ने गोलान या पूर्वी यरुशलम को मिलाया तो उसे मान्यता मिल गई. तुर्की ने सीरिया के क्षेत्र पर क़ब्ज़ा किया तो बात तक नहीं हुई. हमें असली राजनीति पर बात करनी चाहिए."

भारत के रुख़ पर अमेरिका की क्या है प्रतिक्रिया?

लेकिन ऐसा नहीं है कि भारत का रुख यूक्रेन और पश्चिमी देशों को परेशान नहीं कर रहा.

गुरुवार को यूक्रेन के राजदूत डॉक्टर आइगोर पोलिखा ने कहा कि अपने देश में रूस की सैन्य कार्रवाई को लेकर भारत के रुख़ से वो 'असंतुष्ट हैं', और उन्हें भारत से और ज़्यादा सहयोग की उम्मीद थी.

गुरुवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से पूछा गया कि अगर भारत और अमेरिका बड़े रक्षा साझीदार हैं तो दोनों देश क्या रूस के मामले में एक साथ हैं?

इस सवाल के जवाब में जो बाइडन ने कहा, "अमेरिका भारत से बात करेगा. अभी तक पूरी तरह से इसका कोई समाधान नहीं निकला है."

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)
To Top